शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

Ganesh Chalisa

 गणेश चालीसा 




वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ: ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥


दोहा

प्रथम पूज्य गजराज को, प्रथम नमन कर जोर ।
जिनकी करुणामय दया, करते हमें सजोर ।।

श्रद्धा और विश्वास से, पूजे जो गजराज ।
करते वे निर्विघ्न सब, पूरन उनके काज ।।




चौपाई


हे गौरा गौरी के लाला । हे लंबोदर दीन दयाल
सबसे पहले तिहरे सुमिरन  । करते हैं हम वंदन पूजन

हे प्रभु प्रतिभा विद्या दाता । भक्तों के तुम भाग्य विधाता
वेद पुराण सभी गुण गाये। तेरी महिमा भक्त सुनाये

सकल सृष्टि का करने फेरा । मात-पिता को करके डेरा
प्रदक्षिणा प्रभु वर आप किये । सकल सृष्टि को नव ज्ञान दिये

गगन पिता सम माता धरती । दिये ज्ञान प्रभु तुम इस जगती
जनक शंभु शिव प्रसन्न हो अति । बना दिये तुम को गणाधिपति

सबसे पहले पूजे जाते । हर पूजन में पहले आते
गौरी गणेश साथ विराजें । शुभता में अरु शुभता साजे

तुमको सुमिरन कर भक्त सभी । करते काज शुरूआत जभी
सकल काम निर्विघ्न होत है । दया सिंधु की दया जोत है

वक्रतुण्ड हे देव गजानन । हे लंबोदर हे जग पावन
मूषक वाहन बैठ गजानन । भोग लगे मोदक मनभावन

रूप मनोहर सबको भाये । भादो महीना भवन बिठाये
जन्मोत्सव तब भक्त मनाते । जय कारा कर महिमा गाते

माँ की ममता तुम्हें  भावे । तुमको मोदक भोग रिझाते
बाल रूप बच्चों को भाये । मंगल मूरत हृदय बिठाये

एकदन्त प्रभु कृपा कीजिये । सद् विचार सद्बुद्धि दीजिये ।
विक्टमेव  प्रभु विघ्न मिटाओ । बिगड़े सारे काज बनाओ

गौरी नंदन शिव सुत प्यारे । अपनी महिमा से जग में न्यारे

ज्ञान बुद्धि के अधिपति तुम हो । मति मति में पावन मति तुम हो

ज्ञान बुद्धि के तुम हो दाता । अज्ञानी के भाग्य विधाता
सकल वेद के लेखन कर्ता । अज्ञान तमस के तुम हर्ता

धूम्रवर्ण  तेरे तन सोहे ।  तेरा गज मुख जग को मोहे
रिद्धी.सिद्धी  के आपहिं स्वामी । है शुभ-लाभ तनय अनुगामी

रिद्धी-सिद्धी अरु शुभता पाते । कृपा तुम्हारी भक्त हर्षाते
विघ्नों के प्रभु तुम हो हर्ता । पाप कर्म के तुम संहार कर्ता

प्रभु वर अपनी पुनीत भक्ति दें । विमल गंगा सम बुद्धि शक्ति दें
मातु-पिता की सेवा कर लूँ । उनके सब दुःख अपने सिर लूँ

मातृभूमि के चरणकमल पर । करें कर्म निज प्राण हाथ धर
देश भक्ति में कमतर न रहूँ । मातृभूमि हित कुछ पीर सहूँ

शक्ति दीजिये इतनी प्रभु वर । कृपा कीजिये गणपति हम पर
मानवता पथ हम सभी चलें । प्राणी मात्र से हम गले मिलें

सभी पापियों के पाप हरें । ज्ञान पुंज उनके भाल भरें
दोषी पापी नहीं पाप है । लोभ मोह का विकट श्राप है

लोभ मोह का प्रभु नाश करें । सकल सुमति प्रभु हृदय भरें
हे प्रभु वर शुभ मंगल दाता ।  तुम्हारी कृपा अमोघ विख्याता

नारद सादर महिमा गाये । अज्ञानी मोहन क्या बतलाये
भूल-चूक प्रभु आप बिसारें । हम सबके  प्रभु भाग सँवारें

दोहा

भक्त शरण जब जब गहे, सकल क्लेश मिट जात ।
करिये गजानन जब कृपा, सब संभव हो जात ।।

करें मनोरथ पूर्ण सब, मंगल मूर्ति गणेश गजानन।

चरण शरण तन मन धरे, सब विधि अज्ञानी मोहन।।



प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् ।
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ।।
लम्बोदरं पञ्चमं च पष्ठं विक्टमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टकम् ।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ।।


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