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प्रस्तावना
बचपन जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय हैं । यह समय इन्सान का सबसे आनन्दायक क्षण होता हैं । कोई कष्ट कोई समस्या किसी भी हानि-लाभ की कोई फिक्र नहीं । बस केवल प्रसन्नता और आनन्द। जीवन के हर गम से दूर। अपनी मस्ती में मस्त अल्हड अठखेलियॉ करता बचपन। ऐसा होता है बचपन। लेकिन कभी.कभी कोई परिस्थिति बचपन भुला देती हैं और बचपन समय से पहले युवा हो जाता हैं। जहॉ सिर्फ जिम्मेदारी होती है और उन्हें पूरा करने का संघर्ष । और बचपन कहीं गुम हो जाता हैं।
कहानी
यह कहानी एक ऐसे बचपन की हैं। जिसमें सुख-दुख खुशी-गम सब हैं। लेकिन उसे इस बात की कोई फिक्र नही थी। वो तो बस अपनी मस्ती में अपना बचपन जी रही थी। लेकिन वक्त ने ऐसी करवट ली कि उसका बचपन कही खो गया । पर फिर भी वो इसे बचपन समझ कर ही जी रही थी।
यह कहानी है नित्या की। उसका जन्म एक अच्छे व रईस परिवार में हुआ घर में किसी भी चीज की कोई कमी नही थी। नौकर-चाकर गाडी-घोडे रुपया-पैसा बडा घर-परिवार सब कुछ था। माता-पिता ने बडे लाड-प्यार से पाला उसे। उसके पिता अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। और वो अपने भाई-बहनों में सबसे बडी । इसलिये उसे अपने दादा-दादी दोनों बडे पापा और दोनों बुआ व उनके बच्चों का भरपूर स्नेह प्राप्त था। उनकी अठखेलियों से घर में रौनक बनी रहती । दादा-दादी के पास ही ज्यादा समय रहती थी। उनकी माता घर के काम में व्यस्त रहती और पिता अपनी फिल्मी पार्टियों में। ।
कलकता में उसके पापा की 20 दुकाने थी। राजस्थान के ही एक छोटे से गॉव से कलकता आ कर उसके पापा ने ही अपनी मेहनत से यह बडा कारोबार खडा किया था । लेकिन शादी होने और अपने पूरे परिवार को कलकता बुलाने के बाद कारोबार की बागडोर उसके दादा और ताऊ को सौंप कर उसके पापा घर और कारोबार के प्रति लापरवाह हो गये। कारोबार भी उनके ताऊ ही सम्भालते थे। पिता का घ्यान घर-परिवार पर नही था। अपनी बडी होती बेटी और उसकी शिक्षा पर भी नही । और इस बात पर भी नही कि उनके बडे भाई बुरी संगत में पड गये थे।
घर के आस-पास ज्यादातर सिख परिवार और एक गुरुद्वारा था। सात साल की नित्या सारा दिन हंॅसती खेलती ए कभी गुरुद्वारे मेए तो कभी किसी के घरए कोई रोक.टोक नहीं थी । आस-पडोस के लोग सब उनकी मुस्कान व चंचलता और प्रखर बु़़द्ध से प्रभावित होते। जल्द ही नित्या सबकी चहेती बन गई। इस उम्र में भी वह बडों जितनी ही समझदार और होशियार थी। अब तक उसके दो बहनें और एक भाई भी हो चुके थे।
जिनका वो बडे लाड.प्यार और अच्छे से घ्यान रखती। साथ ही घर के काम में अपनी मॉ का हाथ भी बॅटाती। गुरुद्वारे में सेवादारों के सेवा करती। उसे लंगर का खाना बहुत पसन्द था। इसलिये वो घर पर खाना कम ही खाती थी । हालॉकि उसकी दादी उसे समझाती पर बचपने के कारण ज्यादा कुछ नही कहती और वह भी कहॉ घ्यान देने वाली थी। बच्चे तो होते ही मर्जी के मालिक। वैसे भी बच्चों को खाने से ज्यादा खेलने का घ्यान रहता है।
एक दिन उसे मॉ ने घर से थोडी दूर गुरुद्वारे के पास ही स्थित चक्की से आटा लाने को कहा। हिदायत दी जल्दी आना शाम का समय है और पापा आने वाले है। उसके पापा को भूख को बर्दाश्शत नही होती थी। वो आटा लेने चली गई। चक्की पर आई तो देखा। दुकानदार गेंहॅू पिस रहा था। थोडी देर में आटा तैयार होने पर आटा पैक करा कर वो घर की ओर चल दी। रास्ते में ही अचानक उसे भूख लगने लगी।
गुरूद्वारा पास ही था पर हाथ में आटा था। तब ही उसे एक गाय दिखी उसने आटा गाय को डाला और चली गई लगंर खाने। उधर घर पर उसके पापा आ गये थे और भूख से बेहाल खाने के लिये इन्तजार कर रहे थे। काफी देर के बाद भी जब नित्या नही आई तो उसके पापा गये उसे खोजने।आस.पडौस में पूछा तब एक सरदार जी ने बताया कि सेठ जी आपकी कुडी गुरूद्वारे में हैं। जा कर देखा तो नित्या खाना खाकर गुरूद्वारे के बाहर खेलने में मग्न थी।
वो भूल गई थी कि उसे आटा लेकर घर जाना था। उसके पिता बहुत गुस्सा थे । पिता को देख कर वो घर की ओर भागी और घर आकर बिस्तर में जा छुपी। पीछे.2 उसके पिता भी आ गये। गुस्से में आगबबूला उन्होंने नित्या को बिस्तर से उठाया और एक थप्पड जड दिया नित्या रोने लगी । उसकी रोने की आवाज सुनकर उसकी दादी दौडकर आई और उसके पापा का हाथ रोका। उस दिन उसकी दादी ने बीच में आकर उसे बचाया। दादी ने उसके पापा को समझाया कि जब वे बडें हो कर अपनी भूख पर काबू नही रख सकते तो वह तो अभी बहुत छोटी हैं।
उसकी मॉ एक कोने में खडी चुपचाप सब देख रही थी। क्योंकि वो अपने पति के गुस्से से बहुत डरती थी इसलिये बेटी को मार खाते हुये देख भी चुप ही रही। हॉलाकि उसके पापा ने पहली बार उस पर हाथ उठाया था। लेकिन वो बहुत डर गई थी। डर और दर्द के कारण उसने बिस्तर गीला कर दिया। दादी ने उसके कपडे बदले और उसे दूसरे बिस्तर पर अपने साथ सुलाया।
तब तक उसके दादा आटा ले आये थे । मॉ खाना बनाने लगी । दादा जी को पता चला तो उन्होंने उसके पिता को दोबारा हाथ न उठाने की सख्त हिदायत दी । खाना खाकर सब सोने चले गये। सुबह देखा तो नित्या को बुखार था । डॉ0 को दिखाया। दवा दी गई लेकिन नित्या ने डर के कारण बिस्तर पकड लिया था। पूरे दो दिन लगे नित्या को ठीक होने में। पर दो दिन बाद नित्या वही नित्या थी हॅंसती खेलती खिलखिलाती अल्हड बचपन जीती ।
लेकिन शायद वक्त को कुछ और ही मंजूर था । क्योंकि उसकी ये खुशियॉ ये बचपन सब बदलने वाला था । किसी की नजर लग गई थी या समय ने करवट ली थी या शायद उसके बचपन पर उसके पापा द्वारा दी गई चोट के कारण नन्हें मासूम दिल से निकली आह का असर था। जिसके कारण उसके परिवार की साख सम्रद्धि एकता सब चली गई । उसके परिवार को काफी कष्टों का सामना पडा। परिवार से ज्यादा भी खुद को नित्या को। पूरा जीवन ही कष्ट और संघर्ष का पर्याय बन गया था। फिर भी कभी उसने ऊफ तक नही की।
उसके परिवार को कलकता छोड कर वापस राजस्थान में बसना पडा । क्योंकि उसके दादा और ताऊ ने नित्या के पापा की लापरवाही का फायदा उठाया और अपनी बुरी संगति के कारण 20 लाख रुपये जुए में हार गये। और पूरा कारोबार रकम चुकाने में चला गया। तब पूरे परिवार को कलकता छोडना पडा। अपने पास जमा 50 हजार की रकम के साथ उसके पिता अपने पूरे परिवार के साथ इज्जत और सम्मान की खातिर कलकता से रवाना हुये। 2 ट्रकों में सामान और परिवार के साथ 2 दिन 2 रात चलकर वे जयपुर पहुॅचे।
जयपुर में नित्या का ननिहाल था। 3 दिन तक वे जयपुर में रुके लेकिन नित्या के नाना मामा ने उनकी कोई मदद नहीं की । तब उसके पापा ने कोटा का रुख किया। कोटा पहुॅचने पर भी उन्हें 7 दिन तक ट्रक में ही रहना पडा। क्योंकि उन्हें वहॉ कोई जानता नहीं था। बहुत मुश्किल से उन्हें एक घर मिला । वो भी इसलिए क्योंकि आस.पास लोंगो का मानना था कि उसमें एक जिन्न रहता है। इसलिए उस घर को न तो कोई किराये पर लेता था न कोई खरीदता था।
मकान मालिक ने भी देने से पहले उसके पापा को खूब समझाया था। लेकिन उनके पास कोई और रास्ता भी नहीं था। पूरा परिवार 7 दिन से ट्रक में रह रहा था। बच्चों और बुर्जुगों का बुरा हाल था। सर छुपाने के लिए जगह नही थी। आखिरकार मकान मालिक ने होने वाले किसी भी नुकसान के लिये वे स्वंय जिम्मेदार होंगें का वास्ता लेकर उन्हें बगंलेनुमा वो 500 गज का घर 50 रुपये प्रतिमाह किराये पर दे दिया । इस तरह नित्या का परिवार कलकता से आकर कोटा में बस गया।
क्रमश:
दूसरे भाग में
कोटा में बसने पर नित्या के परिवार को काफी दु:खों और कष्टों का सामना करना पडा। तब वो सात साल की नित्या अपने परिवार का सहारा बनी। पूरे परिवार को उसने सम्भाला और संवारा। अपनी शिक्षा के साथ.2 उसने अपने परिवार के पोषण की जिम्मेदारी भी निभाई। लेकिन उसने अपना बचपन नही खोया। उसे सम्भाल कर रखा था दिल के किसी कोने में और जब भी कभी उसे मौका मिलता वो कोशिश करती थी उसे जी सके।
To Read Part 2nd
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nice story
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