शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

BACHAPAN-A Feeling and Struggle

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                                                                        बचपन

                        भाग-2

अब तक आपने पढा:-

                                 नित्या का जन्म कलकत्ता के एक रईस परिवार हुआ था। बचपन से ही नित्या थोडी शरारती काफी समझदार घर-मोहल्ले में सबकी लाडली थी। लेकिन एक दिन छोटी सी भूल पर उसके पापा ने उसे थप्पड जड दिया। उसकी दादी ने उसे बचाया। दो दिन बीमार रहने के बाद नित्या फिर वही थी। हँसती-खेलती। नित्या के पापा शहर के बडे रईसों में शामिल थे। लेकिन उसके पापा अपने कारोबार और घर-परिवार के प्रति लापरवाह थे। जिसका फायदा उठा कर उसके दादा और ताऊ अपनी बुरी संगत के कारण सारा कारोबार जुए में गंवा दिया। जिसके कारण नित्या के परिवार को अपना शहर कलकत्ता छोडना पडा। और उसका पूरा परिवार कोटा राजस्थान आकर बस गया।

अब आगे:-

House with Shop at Corner
         नित्या का परिवार को किराये पर घर तो मिल गया। लेकिन अब समस्या थी परिवार के पालन-पोषण की। नित्या के पापा ने मकान के ही एक कमरे में किराने की दुकान खोल ली  जिसका दरवाजा रोड. की तरफ खुलता था। उसके दोंनों ताऊ फल का व्यापार शुरू कर दिया। वे दोंनों अब नित्या के पापा से अलग रहने लगे। नित्या के दादा-दादी उनके साथ ही रहते थे। नित्या के पापा की दुकान धीरे-2 चलने लगी। एक दिन नित्या के छोटे फूफा जी घर आये। नित्या झट से गोद में जा बैठी। घर की सुधरी स्थिति से वे खुश थे।  नित्या से स्कूल के बारे पूछने पर उनके पिता ने ना में जवाब दिया।क्योंकि वे लडकियों की शिक्षा के पक्ष में नहीं थे |

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                    समझाने पर भी नही माने तब नित्या के फूफा जी ने अपने खर्च पर उनका दाखिला घर के पास ही के सरकारी Girls  स्कूल में करा दिया। और नित्या के पिता को सख्त हिदायत दी कि वे उनकी शिक्षा मेें कोई अडचन न आने दें। इस तरह उसकी शिक्षा आरम्भ हुई।कुछ दिन बाद फूूफा जी वापस लौट गये। अब घर के बाहर की दुनिया से रुबरु हुई। स्कूल में नये दोस्त मिले व आस-पडोस के लोगों से जान-पहचान हुई। उसका बचपन  फिर से खिलखिलाने लगा था। पढना उसे बहुत अच्छा लगता था और वह होशियार भी थी । इसलिए एक बार पढने पर ही उसे सब याद हो जाता था। उसकी समझदारी और Sharp Mind  ने स्कूल की सभी शिक्षिकाओं का दिल जीत लिया था।

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Happy childhood With Friends

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                   साल भर तक सब कुछ सही चलता रहा। लेकिन एक दिन अचानक ही नित्या के पिता काफी बीमार हो गये। डाॅ0 को दिखाया और सभी टेस्ट भी हुए। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। धीरे-2 उनका स्वास्थ्य बिगडता ही जा रहा था। दुकान बंद रहने लगी। व्यापार ठप्प पड गया। 6 महीने में ही दुकान का सारा सामान घर के राशन में पूरा हो गया। मकान का किराया भी बाकी था। जमा पूँजी दवा व घर के अन्य खचा› से कम होने लगी। आर्थिक स्थिति बिगडने लगी थी। हाँलाकि नित्या का स्कूल जारी था। क्योंकि उसकी फीस का खर्च, उसके फूफा जी वहन कर रहे थे। इसलिये घर में किसी ने बाधा उत्पन्न नहीं की।


Negotiate for Rent
           एक दिन मकान मालिक किराये का तकादा करने आया। लेकिन उनकी स्थिति देखकर वो कुछ नही बोला। तब नित्या के पिता ने कहा- क्षमा करें। अभी हमारी स्थिति थोडी खराब हैं। मैं काफी बीमार रहता हँू। व्यापार भी पूरी तरह ठप्प हो गया है। ठीक होने पर मैं आपका पूरा किराया चुका दूगाँ। आपने ठीक ही कहा था। यहाँ वाकई में कोई जिन्न रहता हैं। देखिये हमारी क्या दशा हो गई। तब मकान मालिक बोला- कोई बात नहीैं। देखिये- आप चिन्ता मत किजिये। जीवन में उतार-चढाव तो आते रहते हैं। और रही बात जिन्न की तोए ऐसा कुछ नहीं हैं।


  
New House
दरअसल- बात यह हैं। कि यह हमारा पुश्तैनी मकान हैं। पहले हमारा पूरा परिवार साथ ही रहता था। बाद में सब अलग-2 रहने लगे। तब यह मकान मेरे पिताजी के हिस्से में आया। लेकिन परिवार बँट जाने पर माँँ-पिताजी का यहाँ मन नहीे लगा। और मेरे बच्चे और पत्नि भी पुराने मकाने में नहीे रहना चाहते थे। इसलिए हम नये घर में रहने लगे। क्योंकि मैं व्यापार के सिलसिले में ज्यादातर शहर से बाहर रहता हँू। और मेरे बच्चे भी अभी छोटे हैं। तो पीछे से देखभाल करने वाला कोई नहीे हैं। इसलिए मैंनें ही अपने दोंस्तों से कहकर यह अफवाह फैलाई थी। जिससे कोई पीछे से मकान पर कब्जा न कर ले। आप को घर देते समय भी मुझे यही डर था। इसलिए मैंनें आप से भी यही कहा था।

                                 लेकिन आप भले लोग है। चिन्ता न करें। किराये की कोई बात नहीं। जब आप की स्थिति ठीक हो तब दे देना। और आप जब तक चाहे यहाँ रह सकते हैं। वैसे मैं यह मकान बेचना चाहता हँू। यदि आप चाहे तो मैं आपको बाजार मूल्य से कम दामों में भी यह मकान बेचने को तैयार हँू। नित्या के पिता- नहीं-2 हमारी स्थिति इतनी नहीं हैं। मकान मालिक- ठीक है। लेकिन विचार हो तो बता देना। अच्छा अब मैं चलता हँू। यह कहकर मकान मालिक चला गया।

                                     कुछ दिनों में नित्या के पिता के स्वास्थ्य में धीरे-2 सुधार होने लगा। चूँकि दुकान तो ठप्प हो चुकी थी। इसलिए अब फिर से परिवार के पोषण की समस्या सामने थी। नित्या के पिता को अपने भाईयों का कोई सहारा नहीे था। जबकि उनका का काम-धन्धा सही चल रहा था। हाँलाकि उन्होंनें शुरूआत में अपने बडे. भाईयों की मदद की थी। व्यापार शुरू करने में। लेकिन अव्छी बात यह थी कि अब उनकी थोडी जान-पहचान हो गई थी। लोग उन्हें जानने लगे थे। किसी ने सलाह दी- और काफी सोच-विचार के बाद नित्या के पिता ने भी फलों का व्यापार शुरू करने का निर्णय किया।

Hospital with Market

Fruit's  Shop

                                        मकान-मालिक की जमानत पर उन्हें  MARKET में सरकारी अस्पताल के पास एक दुकान किराये पर मिल गई। कुछ पैसे उधार लेकर नित्या के पिता ने काम शुरू कर दिया। यहाँ भी किस्मत ने उनका साथ दिया। काम अव्छा चल निकला। साथ ही अब सरकारी अस्पताल के सभी डाॅ0 व अन्य स्टाफ भी उन्हें जानने लगे थे। सभी डाॅ0 उनके यहाँ से ही फल खरीदते थे। चूँकि डाॅ0 काॅलोनी उनके घर के रास्ते में पडती थी। इसलिए अक्सर वे घर तक डिलवरी दे देते थे। इससे उनकी साख अच्छी बन गई थी। अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डाॅ0 जैन साहब तो उनके अच्छे मिन्न बन गये थे। अक्सर उनका एक-दूसरे के घर आना-जाना होता था

Products

Happy Family
 काम अच्छा चलने से घर की आर्थिक स्थिति अब सुघरने लगी थी। और कर्ज भी चुक गया था। नित्या अब दस साल की हो चुकी थी। और उसके एक छोटी बहन और भाई भी हो चुके थे। वह अपने सभी भाई-बहनों का अच्छे से ख्याल रखती थी। घर क काम में अपनी माँ का हाथ भी बटाँती। रान्नि में वह अपने दादा-दादी के पास ही विश्राम करती थी। बचपन  से ही उसकी दादी उसे अच्छी-2 कहानियाँ और भूत-भविष्य-वर्तमान की ज्ञानवर्धक बातों की शिक्षा दिया करती थी। अपने दिल और दिमाग में उसने उन  सब बातों को आत्मसात कर लिया था। साथ ही वह शिक्षा में भी दिन प्रतिदिन अच्छा प्रदर्शन कर रही थी। उसकी सभी शिक्षिकायें उसे बहुत पसन्द करती थी। इसलिए वे उसे हर साल एक कक्षा ऊपर एडमिशन देने लगी। नित्या ने भी उन्हें निराश नहीं किया।

                              
                              अब घर की परिस्थिति अनुकूल होती दिख रही थी। कि अचानक एक दिन फिर से नित्या के पिता दुबारा बीमार हो गये। उसके दादा जी जल्दी से जाकर डाॅ0 जैन साहब को बुला लाये। चैकअप के बाद उन्होंनें बताया कि अधिक शारीरिक श्रम के कारण उनकी तबियत खराब हुई हैं। पहले भी शायद इसी कारण से ये बीमार हुए थे। नित्या के दादा ने कहा- आपने सही समझा डाॅ0 साहब। दरअसलए नित्या के पापा को इतनी मेहनत करने की आदत नहीं हैं।  कलकत्ता में हमारा खुद का अच्छा-खासा कारोबार था। मैं और इसके दोंनों बडे. भाई व कर्मचारी ही सारा काम देखते थे | 

                                                                                                       Tips & Tricks

Doctor Advise To DADA ji
                                  लेकिन अब यहाँ सारा काम इसे खुद ही करना पडता हैं। क्योंकि मैं इस उम्र में इतनी मेहनत नहीे कर सकता और मेरे दोंनों बडे बेटे अलग रहते हैं। इसलिए यह बीमार रहने लगा हैं। डाॅ0 साहब-चलिए। कोई नहीे। जिन्दगी में उतार-चढाव तो चलते रहते हैं। अब आप इनका ध्यान रखिए। और चिन्ता न करें। किसी भी तरह की मदद की जरूरत हो तो कहने से हिचकिचाईयगा नहीे।  ठीक हैं। अब मैं चलता हँू। डाॅ0 साहब ने पर्ची पर कुछ दवायें लिखी और समय से दवा लेने व आराम करने की सलाह दी। साथ ही ज्यादा परेशानी होने पर अस्पताल में दिखाने की हिदायत देकर वे चले गये

      

            नित्या के पिता ने फिर से बिस्तर पकड लिया था। घर की स्थिति फिर से बिगडने लगी। लेकिन अब मदद करने वाला भी कोई नहीं था। नित्या के दोंनों ताऊ अपनी घर-ग्रहस्थी में ही मग्न थे। उन्हें अपने छोटे भाई की परेशानी से कोई लेना-देना नहीं था। जबकि उनके भाईयों का परिवार छोटा था और उनके भाई व भतीजे सभी कमाने वाले थे। मदद करना तो दूर उल्टे वे तो मौका ढूढँते रहते थे नित्या के पिता को ताना देने और नीचा दिखाने का। जबकि उनकी इस स्थिति के जिम्मेदार उसके ताऊ ही थे। नित्या के पिता की बीमारी दिन प्रतिदिन बढती ही जा रही थी। 

                                       काम-धन्धा बन्द था। वैसे भी फलों का व्यापार तो रोज कमाओएरोज खाओ वाला था। परिवार बढ रहा था और कमाने वाले थे अकेले नित्या के पिता। वैसे इस बार इलाज सरकारी अस्पताल में होने से दवा व बीमारी के अन्य खर्चों में राहत थी। लेकिन राशन व घर के अन्य खर्चों में जो भी बचत थी वो सारी जमा पूँजी खर्च हो चुकी थी। 2 महीने में ही घर के  हालात बद से बदतर होने लगे। ऐसे में एक दिन मजबूर हो कर  नित्या के दादा जीए नित्या को लेकर अपने दोंनों बडे बेटों के पास मदद माँगने पहँुचे। लेकिन मदद करने कि उन्होंनें अपने पिता को काफी खरी-खोटी और कोई मदद भी नहीं की। नित्या के दादा जी को खाली ही लौटना पडा।



                                       नित्या के दिल और दिमाग पर इसका काफी गहरा असर हुआ। इधर घर में सभी चिन्तित थे। कि अब क्या करें। उसके दादा-दादी काम सम्भाल नही सकते थे। नित्या की माँ उसके पिता और घर की देखभाल में व्यस्त रहती थी । और वैसे भी उन्हें व्यापार की कोई समझ नही थी। नित्या के पिता की हालत में कुछ खास सुधार नही था। क्योंकि चिन्ता ने बीमारी को और बडा दिया था। सब इसी चिन्ता में थे कि अब आगे क्या होगा।

What Next
क्रमश:-

अगले भाग में:-

                        नित्या के परिवार के हालात कैसे ठीक हुए। क्या किसी ने उनकी मदद की ? नित्या पर इन सब का क्या असर हुआ। कैसे उसका जीवन प्रभावित हुआ। उसने क्या निर्णय लिया और उसे किन परेशानियों का सामना करना पडा। कैसे उसने अपने परिवार की जिम्मेदारी ली। और परिवार को सम्भाला। उसकी शिक्षा का क्या हुआ। उसके परिवार ने उसका साथ दिया या नही। उस नन्हीं सी जान को किन संघर्षों और कष्टों का सामना करना पडा। और उसके जीवन ने आगे किस तरह परिवर्तन आया। क्या उसका बचपन कहीं खो गया या सम्भाल कर रखा था उसने अपने बचपन को। अपने जीवन में क्या वो जी पाई दिल दिमाग से  अपना बचपन । या जीवन के संघर्ष में नष्ट होे गया उसका बचपन।    

First Part:-

          

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