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बचपन
भाग-2
अब तक आपने पढा:-
नित्या का जन्म कलकत्ता के एक रईस परिवार हुआ था। बचपन से ही नित्या थोडी शरारती काफी समझदार घर-मोहल्ले में सबकी लाडली थी। लेकिन एक दिन छोटी सी भूल पर उसके पापा ने उसे थप्पड जड दिया। उसकी दादी ने उसे बचाया। दो दिन बीमार रहने के बाद नित्या फिर वही थी। हँसती-खेलती। नित्या के पापा शहर के बडे रईसों में शामिल थे। लेकिन उसके पापा अपने कारोबार और घर-परिवार के प्रति लापरवाह थे। जिसका फायदा उठा कर उसके दादा और ताऊ अपनी बुरी संगत के कारण सारा कारोबार जुए में गंवा दिया। जिसके कारण नित्या के परिवार को अपना शहर कलकत्ता छोडना पडा। और उसका पूरा परिवार कोटा राजस्थान आकर बस गया।
अब आगे:-
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House with Shop at Corner |
समझाने पर भी नही माने तब नित्या के फूफा जी ने अपने खर्च पर उनका दाखिला घर के पास ही के सरकारी Girls स्कूल में करा दिया। और नित्या के पिता को सख्त हिदायत दी कि वे उनकी शिक्षा मेें कोई अडचन न आने दें। इस तरह उसकी शिक्षा आरम्भ हुई।कुछ दिन बाद फूूफा जी वापस लौट गये। अब घर के बाहर की दुनिया से रुबरु हुई। स्कूल में नये दोस्त मिले व आस-पडोस के लोगों से जान-पहचान हुई। उसका बचपन फिर से खिलखिलाने लगा था। पढना उसे बहुत अच्छा लगता था और वह होशियार भी थी । इसलिए एक बार पढने पर ही उसे सब याद हो जाता था। उसकी समझदारी और Sharp Mind ने स्कूल की सभी शिक्षिकाओं का दिल जीत लिया था।
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Reading |
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Happy childhood With Friends |
साल भर तक सब कुछ सही चलता रहा। लेकिन एक दिन अचानक ही नित्या के पिता काफी बीमार हो गये। डाॅ0 को दिखाया और सभी टेस्ट भी हुए। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। धीरे-2 उनका स्वास्थ्य बिगडता ही जा रहा था। दुकान बंद रहने लगी। व्यापार ठप्प पड गया। 6 महीने में ही दुकान का सारा सामान घर के राशन में पूरा हो गया। मकान का किराया भी बाकी था। जमा पूँजी दवा व घर के अन्य खचा› से कम होने लगी। आर्थिक स्थिति बिगडने लगी थी। हाँलाकि नित्या का स्कूल जारी था। क्योंकि उसकी फीस का खर्च, उसके फूफा जी वहन कर रहे थे। इसलिये घर में किसी ने बाधा उत्पन्न नहीं की।
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Negotiate for Rent |
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New House |
कुछ दिनों में नित्या के पिता के स्वास्थ्य में धीरे-2 सुधार होने लगा। चूँकि दुकान तो ठप्प हो चुकी थी। इसलिए अब फिर से परिवार के पोषण की समस्या सामने थी। नित्या के पिता को अपने भाईयों का कोई सहारा नहीे था। जबकि उनका का काम-धन्धा सही चल रहा था। हाँलाकि उन्होंनें शुरूआत में अपने बडे. भाईयों की मदद की थी। व्यापार शुरू करने में। लेकिन अव्छी बात यह थी कि अब उनकी थोडी जान-पहचान हो गई थी। लोग उन्हें जानने लगे थे। किसी ने सलाह दी- और काफी सोच-विचार के बाद नित्या के पिता ने भी फलों का व्यापार शुरू करने का निर्णय किया।
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Hospital with Market |
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Fruit's Shop |
मकान-मालिक की जमानत पर उन्हें MARKET में सरकारी अस्पताल के पास एक दुकान किराये पर मिल गई। कुछ पैसे उधार लेकर नित्या के पिता ने काम शुरू कर दिया। यहाँ भी किस्मत ने उनका साथ दिया। काम अव्छा चल निकला। साथ ही अब सरकारी अस्पताल के सभी डाॅ0 व अन्य स्टाफ भी उन्हें जानने लगे थे। सभी डाॅ0 उनके यहाँ से ही फल खरीदते थे। चूँकि डाॅ0 काॅलोनी उनके घर के रास्ते में पडती थी। इसलिए अक्सर वे घर तक डिलवरी दे देते थे। इससे उनकी साख अच्छी बन गई थी। अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डाॅ0 जैन साहब तो उनके अच्छे मिन्न बन गये थे। अक्सर उनका एक-दूसरे के घर आना-जाना होता था
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Happy Family |
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Doctor Advise To DADA ji |
नित्या के पिता ने फिर से बिस्तर पकड लिया था। घर की स्थिति फिर से बिगडने लगी। लेकिन अब मदद करने वाला भी कोई नहीं था। नित्या के दोंनों ताऊ अपनी घर-ग्रहस्थी में ही मग्न थे। उन्हें अपने छोटे भाई की परेशानी से कोई लेना-देना नहीं था। जबकि उनके भाईयों का परिवार छोटा था और उनके भाई व भतीजे सभी कमाने वाले थे। मदद करना तो दूर उल्टे वे तो मौका ढूढँते रहते थे नित्या के पिता को ताना देने और नीचा दिखाने का। जबकि उनकी इस स्थिति के जिम्मेदार उसके ताऊ ही थे। नित्या के पिता की बीमारी दिन प्रतिदिन बढती ही जा रही थी।
काम-धन्धा बन्द था। वैसे भी फलों का व्यापार तो रोज कमाओएरोज खाओ वाला था। परिवार बढ रहा था और कमाने वाले थे अकेले नित्या के पिता। वैसे इस बार इलाज सरकारी अस्पताल में होने से दवा व बीमारी के अन्य खर्चों में राहत थी। लेकिन राशन व घर के अन्य खर्चों में जो भी बचत थी वो सारी जमा पूँजी खर्च हो चुकी थी। 2 महीने में ही घर के हालात बद से बदतर होने लगे। ऐसे में एक दिन मजबूर हो कर नित्या के दादा जीए नित्या को लेकर अपने दोंनों बडे बेटों के पास मदद माँगने पहँुचे। लेकिन मदद करने कि उन्होंनें अपने पिता को काफी खरी-खोटी और कोई मदद भी नहीं की। नित्या के दादा जी को खाली ही लौटना पडा।
नित्या के दिल और दिमाग पर इसका काफी गहरा असर हुआ। इधर घर में सभी चिन्तित थे। कि अब क्या करें। उसके दादा-दादी काम सम्भाल नही सकते थे। नित्या की माँ उसके पिता और घर की देखभाल में व्यस्त रहती थी । और वैसे भी उन्हें व्यापार की कोई समझ नही थी। नित्या के पिता की हालत में कुछ खास सुधार नही था। क्योंकि चिन्ता ने बीमारी को और बडा दिया था। सब इसी चिन्ता में थे कि अब आगे क्या होगा।
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What Next |
अगले भाग में:-
नित्या के परिवार के हालात कैसे ठीक हुए। क्या किसी ने उनकी मदद की ? नित्या पर इन सब का क्या असर हुआ। कैसे उसका जीवन प्रभावित हुआ। उसने क्या निर्णय लिया और उसे किन परेशानियों का सामना करना पडा। कैसे उसने अपने परिवार की जिम्मेदारी ली। और परिवार को सम्भाला। उसकी शिक्षा का क्या हुआ। उसके परिवार ने उसका साथ दिया या नही। उस नन्हीं सी जान को किन संघर्षों और कष्टों का सामना करना पडा। और उसके जीवन ने आगे किस तरह परिवर्तन आया। क्या उसका बचपन कहीं खो गया या सम्भाल कर रखा था उसने अपने बचपन को। अपने जीवन में क्या वो जी पाई दिल दिमाग से अपना बचपन । या जीवन के संघर्ष में नष्ट होे गया उसका बचपन।
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