गणेश चालीसा
दोहा
प्रथम पूज्य गजराज को, प्रथम नमन कर जोर ।
जिनकी करुणामय दया, करते हमें सजोर ।।
श्रद्धा और विश्वास से, पूजे जो गजराज ।
करते वे निर्विघ्न सब, पूरन उनके काज ।।
चौपाई
हे गौरा गौरी के लाला । हे लंबोदर दीन दयाल
सबसे पहले तिहरे सुमिरन । करते हैं हम वंदन पूजन
हे प्रभु प्रतिभा विद्या दाता । भक्तों के तुम भाग्य विधाता
वेद पुराण सभी गुण गाये। तेरी महिमा भक्त सुनाये
सकल सृष्टि का करने फेरा । मात-पिता को करके डेरा
प्रदक्षिणा प्रभु वर आप किये । सकल सृष्टि को नव ज्ञान दिये
गगन पिता सम माता धरती । दिये ज्ञान प्रभु तुम इस जगती
जनक शंभु शिव प्रसन्न हो अति । बना दिये तुम को गणाधिपति
सबसे पहले पूजे जाते । हर पूजन में पहले आते
गौरी गणेश साथ विराजें । शुभता में अरु शुभता साजे
तुमको सुमिरन कर भक्त सभी । करते काज शुरूआत जभी
सकल काम निर्विघ्न होत है । दया सिंधु की दया जोत है
वक्रतुण्ड हे देव गजानन । हे लंबोदर हे जग पावन
मूषक वाहन बैठ गजानन । भोग लगे मोदक मनभावन
रूप मनोहर सबको भाये । भादो महीना भवन बिठाये
जन्मोत्सव तब भक्त मनाते । जय कारा कर महिमा गाते
माँ की ममता तुम्हें भावे । तुमको मोदक भोग रिझाते
बाल रूप बच्चों को भाये । मंगल मूरत हृदय बिठाये
एकदन्त प्रभु कृपा कीजिये । सद् विचार सद्बुद्धि दीजिये ।
विक्टमेव प्रभु विघ्न मिटाओ । बिगड़े सारे काज बनाओ
गौरी नंदन शिव सुत प्यारे । अपनी महिमा से जग में न्यारे
ज्ञान बुद्धि के अधिपति तुम हो । मति मति में पावन मति तुम हो
ज्ञान बुद्धि के तुम हो दाता । अज्ञानी के भाग्य विधाता
सकल वेद के लेखन कर्ता । अज्ञान तमस के तुम हर्ता
धूम्रवर्ण तेरे तन सोहे । तेरा गज मुख जग को मोहे
रिद्धी.सिद्धी के आपहिं स्वामी । है शुभ-लाभ तनय अनुगामी
रिद्धी-सिद्धी अरु शुभता पाते । कृपा तुम्हारी भक्त हर्षाते
विघ्नों के प्रभु तुम हो हर्ता । पाप कर्म के तुम संहार कर्ता
प्रभु वर अपनी पुनीत भक्ति दें । विमल गंगा सम बुद्धि शक्ति दें
मातु-पिता की सेवा कर लूँ । उनके सब दुःख अपने सिर लूँ
मातृभूमि के चरणकमल पर । करें कर्म निज प्राण हाथ धर
देश भक्ति में कमतर न रहूँ । मातृभूमि हित कुछ पीर सहूँ
शक्ति दीजिये इतनी प्रभु वर । कृपा कीजिये गणपति हम पर
मानवता पथ हम सभी चलें । प्राणी मात्र से हम गले मिलें
सभी पापियों के पाप हरें । ज्ञान पुंज उनके भाल भरें
दोषी पापी नहीं पाप है । लोभ मोह का विकट श्राप है
लोभ मोह का प्रभु नाश करें । सकल सुमति प्रभु हृदय भरें
हे प्रभु वर शुभ मंगल दाता । तुम्हारी कृपा अमोघ विख्याता
नारद सादर महिमा गाये । अज्ञानी मोहन क्या बतलाये
भूल-चूक प्रभु आप बिसारें । हम सबके प्रभु भाग सँवारें
दोहा
भक्त शरण जब जब गहे, सकल क्लेश मिट जात ।
करिये गजानन जब कृपा, सब संभव हो जात ।।
करें मनोरथ पूर्ण सब, मंगल मूर्ति गणेश गजानन।
चरण शरण तन मन धरे, सब विधि अज्ञानी मोहन।।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् ।
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ।।
लम्बोदरं पञ्चमं च पष्ठं विक्टमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टकम् ।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ।।
Contact Us:- For Connect
Also Read Other Pages:-
Affiliate Products Tips & Tricks Home AM House MYBIO
To Read Stories:- Amazing Story
Follow us on:-
Follow us on:-